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मेरी प्यारी रचना,
सदा प्रकाशित रहो,
पिछले सप्ताह मैके से भेजा हुआ तुम्हारा हस्तलिखित प्रेम पत्र प्राप्त हुआ, धन्यवाद, परन्तु मुझे संदेह है की तुम्हारा ये पत्र मौलिक नहीं है, क्योंकि मैं तुम्हारी लेखन शैली से भली-भंति परिचित हूँ, यह पत्र अवश्य ही तुमने अपनी भाभी अथवा सहेली के प्रेम पत्रों से चुरा कर भेजा है। किसी की चुराई हुई सामग्री मुझे पसंद नहीं, इसलिए भविष्य में केवल मौलिक प्रेम पत्र ही भेजा करो और मौलिकता का प्रमाण-पत्र देना भी जरुरी है ।
तुम्हारे प्रेम-पत्र की भाषा बेहद रुखी और अरुचिकर लगती है, जिसे पढकर प्रेम के बजाय दंगे-फंसाद का अनुभव होता है, लिखावट भी ऐसी है, मनो कागज पर कीड़े-मकोड़े रेंग रहे हों । व्याकरण और मात्राओं पर भी तुमने ध्यान नहीं रखा है, इसलिए तुम्हारा प्रेम-पत्र पढ़ने से पहले मुझे उप-सम्पादक द्वारा 'करेक्शन' करवाना पड़ा (ये और बात है की उसके द्वारा किया हुआ 'करेक्शन' मुझे दुबारा 'करेक्ट' करना पड़ा।)
एक संपादक की पत्नी होने की नाता तुम्हे यह मालूम होना चाहिए की पत्र कागज के सिर्फ एक तरफ से लिखना चाहिए और लिखते समय कागज के एक ओर हाशिया अवश्य छोड़ देना चाहिये।
खेर, इन तमाम त्रुटियों के बावजूद तुम्हारा प्रेम-पत्र पढ़ कर मैं अपनी प्रसन्ता का स्वीकृति पत्र तुम्हे भेज रहा हूँ। आशा है, तुम इसे अस्वीकृत नहीं करोगी। मैं इस पत्र के साथ अपना पता लिखा लिफाफा सलंग्न कर रहा हूं। तुम अपनी वापसी के सम्बध में अपने निर्णय से मुझे शीघ्र सूचित करना। तुम्हारे अगले प्रेम-पत्र की प्रतीक्षा में।
तुम्हारा मौलिक पति
पूर्ण विराम सिंह
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