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भगवान यमराज के जन्मदिन पर
लगा हुआ था दरबार
मृत्युलोक से आई हुई तीन आत्माएं
कर रही थी भाग्य निर्णय का इंतजार
एक सेठ, एक जौहरी और एक चोर
यमराज प्रभु मुखातिब हुए चित्रगुप्त की ओर
आज ख़ुशी का दिन है गुप्त जी
सबकी इच्छा पूर्ण करेंगे
पापी हो, अपराधी हो, या धर्मात्मा
जो मांगेगा वो ही उसको देंगे।
सेठ ने कहा,
"यमराज मैं दस लाख की सम्पति छोडकर आया हूँ,
पुनर्जन्म में इससे दस गुनी मिल जाये
तो मैं करोडपति हो जाऊं।"
"तथास्तु " कह कर प्रभु ने दृष्टी घुमायी
अब जौहरी की बारी आयी
"मैं अधिक नहीं चाहता श्रीमान,
हीरा-मोती जवाहरात से भरी हुई
मिल जाये वही पुराणी दुकान।"
"तथास्तु" बोलकर अंत में चोर से
"तु क्या चाहता है? वत्स।"
"मैं कुछ नहीं चाहता प्रभु ,
बस इतनी कृपा कीजिए
मुझे इन दोनों के पूरे पते बता दीजिए।"
===*===*===अंतर्जाल से साभार ===*===*===
हंसते रहिये विद्वानों का कहना है, हंसने से आदमीं स्वस्थ रहता है। अगर आपको मेरा प्रयास अच्छा लगा तो फेसबुक पेज लाइक कीजिये ताजा अपडेट पाने के लिए। धन्यवाद!
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